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Babur kon tha | बाबर का जीवन परिचय

  • Writer: Tanish Saifi
    Tanish Saifi
  • Sep 10, 2021
  • 7 min read

History of Babur | बाबर कौन था ?



Babur kon tha : बाबर का जन्म 14 फरवरी 1483 में उज्बेकिस्तान में हुआ था। बाबर का पूरा नाम जहीरूद्दीन मोहम्मद बाबर था। उनके बारे में सबसे खास बात यह है कि वह अमीर तैमूर और चंगेज खान के वंशज थे जहीरूद्दीन बाबर को अमीर तैमूर और चंगेज खान की बहादुरी विरासत में मिली थी अमीर तैमूर की बहुत बड़ी सल्तनत थी लेकिन जब अमीर तैमूर का इंतकाल हुआ तो उसके बेटों ने अमीर तैमूर की सल्तनत को टुकड़ों में बांट लिया उन्हीं बटी हुई सल्तनत में से एक सल्तनत उज़्बेकिस्तान के इलाके में थी यह सल्तनत अमीर तैमूर के पांच वंशजों के बाद आकर जहीरूद्दीन मोहम्मद बाबर के बाप के हिस्से मै आई थी और फिर बाबर के वालिद के मर जाने के बाद यह सल्तनत बाबर के हिस्से में आई थी।


बाबर का जीवन परिचय | babur ka shuruati jeevan


जिस वक्त बाबर सल्तनत की गद्दी पर बैठा उस समय उसकी उम्र सिर्फ 13 साल थी लेकिन फिर अचानक से बाबर के चाचा ने उसके खिलाफ बगावत कर दी ना चाहते हुए भी बाबर को अपने चाचा से लड़ाई करनी पड़ी और फिर बाबर के हाथ से वह सल्तनत चली गई उसके बाद वह कई सालों तक जंगलों में फिरता रहा बाबर ने अपनी 30 साल तक की उम्र जंगलों में भटक भटक कर ही गुजार दी थी उनके लिए कई दिन तो ऐसे मुश्किल से भरे हुए गुजरे थे कि बाबर को जंगलों में दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हुआ करती थी लेकिन बाबर ने कभी हार नहीं मानी बाबर को जब महसूस हुआ कि वह अपने वालिद की सल्तनत को वापस नहीं ले पाएगा तो उसने अपनी सल्तनत को वापस लेने के बजाय अफगानिस्तान को फ़तेह करने का इरादा बनाया बाबर ने सबसे पहले अफगानिस्तान के कुछ इलाकों को फ़तेह किया और इलाकों को फ़तेह करने के बाद हिंदुस्तान की तरफ रवाना हुआ।


Battle of Panipat | पानीपत का पहला युद्ध Babur Entry in India


First Battle of Panipat – जिस वक्त बाबर हिंदुस्तान को फतेह करने के लिए हिंदुस्तान में दाखिल हुआ था उस वक्त बाबर के पास सिर्फ 13 हजार की ही फ़ौज़ थी। और उसका मुकाबला पठान सल्तनत के सरदार यानि इब्राहिम लोधी से था। इब्राहिम लोदी के पास तकरीबन एक लाख फ़ौज़ थी इब्राहिम लोदी को भी यही लग रहा था कि वह बाबर को आसानी के साथ हरा सकता है क्योंकि इब्राहिम लोधी के पास एक लाख सिपाही के साथ-साथ हजारों की तादाद में हाथी भी मौजूद थे हर चीज इब्राहिम लोदी के मुकाबले में बाबर के पास कम थी। सिपाही भी कम से हथियार भी कम थे और हाथी भी नहीं थे। लेकिन उसके बावजूद भी बाबर को पूरा कॉन्फिडेंस था की वो इब्राहिम लोधी को आसानी से हरा देगा क्योंकि बाबर के पास एक ऐसा हथियार था जो आज से पहले हिंदुस्तान में किसी ने नहीं देखा था और ना ही आज से पहले हिंदुस्तान की किसी जंग में ऐसा हथियार इस्तेमाल किया गया था और वो हथियार था बाबर की खतरनाक तोपे। फिर 1 दिन पानीपत के मैदान में जहीरूद्दीन बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच 21 अप्रैल, 1526 ई० को (First battle of Panipat) पानीपत का पहला युद्ध हुआ । पानीपत के युद्ध में इब्राहिम लोदी ने जब देखा कि मेरी फौज बाबर के मुकाबले में हद से ज्यादा ताकतवर है तो उसने अपनी पूरी फौज को एक साथ खुले मैदान में हमला करने का आर्डर जारी किया लेकिन शायद ये इब्राहिम लोदी की सबसे बड़ी गलती थी बाबर ने जब देखा कि इब्राहिम लोधी की पूरी फौज खुलकर एक साथ हमला कर रही है तो बाबर में भी अपनी सारी तोपे चलाने वालों को तोप चलाने का ऑर्डर दे दिया बाबर के पास तकरीबन 10 तोपे थी बाबर ने एक साथ तोपे बरसाना शुरू किया तोपो की तेज आवाज़ से इब्राहिम लोदी के सारे हाथी पागल हो गए तोपो की खतरनाक आवाज़ सुनकर इबराहीम लोधी के सारे हाथी उल्टे पांव भागने लगे और भागते हुए हाथियो ने इब्राहिम लोधी के हजारों सिपाहियों को कुचलते चले गए जिसकी वजह से लोधी की पूरी फौज में भगदड़ मच गई।

Battle Of panipat

बाबर ने जब अपने दुश्मन के ऐसे हालात देखे तो अपनी छोटी सी जो 13 हजार की फौज थी उसे एक साथ हमला करने का आर्डर दिया। बाबर का यह हमला इतना तेज था कि लोधी चाह कर भी उस हमले को नहीं रोक सका और इस जंग में इब्राहिम लोधी भी मारा गया। इस तरह से हिंदुस्तान में बाबर को अपनी पहली फ़तेह नसीब हो गई थी और इस जंग को जीतने के साथ ही बाबर ने हिंदुस्तान में मुग़ल सल्तनत की बुनियाद रखी। लोधी को हराने के बाद जहीरूद्दीन बाबर पुरी शानो शौकत के साथ दिल्ली में दाखिल हुआ उस वक्त दिल्ली के सारे किलो पर लोधी की फैमिली का ही कब्जा था लेकिन बाबर ने इब्राहिम लोदी की मां से इस शर्त के साथ वह किले खाली करवा लिए कि मैं लोधी की फैमिली के किसी भी मेंबर को कुछ नहीं कहूंगा और ना ही किसी को कोई जानी माली नुकसान पहुंचाया जाएगा। बाबरनामे में खुद बाबर ने भी यही लिखा है कि वह लोदी की माँ को माँ का दर्जा दिया करता था और उन्हें माँ कहकर ही बुलाया करता था। लेकिन कुछ सालों के बाद इब्राहिम लोदी की माँ ने अपने बेटे इब्राहिम लोदी की हार का बदला लेने के लिए हद पार कर दी यहां तक कि खाने में जहर मिला दिया था लेकिन बाबर को जब इस बात की खबर हुई तो बाबर ने उन्हें कैद करवा दिया और उसके बाद कहा जाता है कि कुछ दिनों के बाद कैदखाने में ही इब्राहिम लोदी की माँ का इंतकाल हो गया था।


Battle of Khanwa | खानवा का युद्ध


Battle of Khanwa


Khanwa ka yudh – दिल्ली की सल्तनत पर बैठने के बाद बाबर के सामने जो सबसे पहली मुसीबत आई थी वो थी मेवाड़ का राजा राणा सांगा क्योंकि राणा सांगा बाबर की सल्तनत को कुबूल करने के लिए तैयार नहीं था। और आपको जानकर हैरानी होगी कि बाबर को हिंदुस्तान में राणा सांगा ने ही बुलाया था राणा सांगा ने बाबर को यह खत लिखा था कि तुम भारत आओ और भारत को लोधियों के हाथों से छुड़ा लो क्योंकि राणा सांगा ये सोच रहा था कि शायद बाबर भी अपने (जद्दे अमजद) यानी अमीर तैमूर की तरह हिंदुस्तान को सिर्फ फ़तेह करके और इसी लूट करके वापस चला जाएगा और जब लोधी सल्तनत लूट जाएगी तो हम सब राजपूत मिलकर एक साथ एक बड़ी सल्तनत कायम कर लेंगे लेकिन कि उसे इस बात का जर्रा बराबर भी शक नहीं था कि बाबर इब्राहिम लोदी को हराकर हिंदुस्तान में ही रहकर सल्तनत करने लगेगा जब बाबर ने दिल्ली पर सल्तनत करना शुरू किया तो राणा सांगा ने बाबर की सल्तनत को मानने से इंकार कर दिया और राणा सांगा ने न सिर्फ बाबर को भारत में बुलाया था बल के साथ साथ ही यह भी वादा किया था कि वह इब्राहिम लोदी के खिलाफ बाबर का जंग मे भी साथ देगा लेकिन जब बाबर हिंदुस्तान में इब्राहिम लोदी के खिलाफ जंग कर रहा था तो राणा सांगा अपने इलाके में ही बैठकर यह सब कुछ देख रहा था और बाबर की मदद नहीं कर रहा था इस वजह से भी बाबर राणा सांगा से ज्यादा नाराज था और सुल्तान बनने के 1 साल बाद ही 17 मार्च 1527′ को राणा सांगा और बाबर के बीच (Battle of Khanwa) खानवा का युद्ध हुआ। और इस जंग में भी बाबर ने अपनी जबरदस्त होशियारी और तोपों के जरिए से राणा सांगा की फौज को चंद लम्हों में ही हरा दिया था राणा सांगा को जब महसूस हुआ कि वह अब इस जंग में नहीं बच पाएगा तो वो बीच में ही जंग छोड़ कर भागने लगा लेकिन बाबर ने राणा सांगा का पीछा नहीं किया। और (Battle of Khanwa) का युद्ध बाबर ने जीत लिया। कहा जाता है कि बाबर से हारने के ठीक 1 साल के बाद ही राणा सांगा की मौत हो गई थी। इसके बाद 29 मार्च 1528 ई० मे बाबर और मेदनी राय के बीच (Battle of Chanderi) चंदेरी का युद्ध हुआ और इसमे भी बाबर की जीत हुई। और इसके बाद बाबर ने अपना आखिरी युद्ध लड़ा जो 6 मई 1529 ई० को मुग़ल(बाबर) और सुल्तनत-ए-बंगाल (Sultante of Bangal) के बिच हुआ जिसे (Battle of Ghagra) घाघरा का युद्ध के नाम से जाना गया और इस युद्ध मे भी मुग़ल बादशाह ज़ेहरुद्दीन मुहम्मद बाबर की जीत हुई।

Death of Babur | बाबर की मौत कैसे हुई

  • Death of Babur

बाबर ने अपनी जान देकर बचाई हुमायूँ की जान – बाबर की मौत के बारे में एक कहानी भी मशहूर है कि बाबर का बेटा यानी हुमायूँ जिससे बाबर बहुत प्यार करा करता था एक बार बहुत बीमार हो गया था हुमायूँ को बीमार देख कर बाबर बहुत ज्यादा परेशान रहा करता था। लाखो कोशिशों के बाद भी हुमायूँ को होश नहीं आया हर तरह से इलाज किया गया बड़े से बड़े डॉक्टर के इलाज के बाद भी हुमायूँ को होश नहीं आया बाबर बोहोत ज्यादा दुखी हो गए बाबर हमेशा रो-रो कर यही दुआ करते रहे कि (ए अल्लाह तू मेरे बेटे को ठीक कर दे चाहे तो बदले में मेरी जिंदगी लेले) और एक दिन हुमायूँ को होश आ गया। लेकिन जैसे ही हुमायूँ को होश आया तभी बाबर बेहोश हो गए और तब से ही बाबर बीमार रहने लगे और अपने प्यारे बेटे हुमायूँ के पूरी तरह से ठीक होते ही बाबर इन्तेकाल कर गए।

  • Tomb of Babur

बाहर की कबर के बारे में बात की जाए तो क्योंकि बाबर ने यह नसीहत की थी कि उसको मरने के बाद उसके पुराने वतन यानी काबुल में उसके माँ-बाप के पास ही दफनाया जाए तो इसलिए बाबर को उसके बेटे हुमायूं ने बाबर गार्डन, काबुल, (अफगानिस्तान) में ही दफनाया था आज भी बाबर की कब्र काबुल शहर में मौजूद है।

Baburnama | बाबरनामा

Baburnama

बाबरनामा, मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक ज़ाहिर-उद-दीन मुहम्मद बाबर ने लिखा था जिसमे बाबर ने अपने पूरा जीवन के बारे मे लिखा था। बाबर ने बाबरनामा में उस दौर की राजनीती और आर्थिक स्थिति के बारे मे भी लिखा है बाबरनामा चगताई भाषा में लिखा गया है; चगताई एक तुर्की भाषा है।

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